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बुधवार, 29 जनवरी 2020

संबंधों का इंद्रजाल

संबंधों का इंद्रजाल

परमात्मा हर जीव को जन्म देता है। उसके पोषण की व्यवस्था करता है और नियत अवधि के बाद उसका जीवन हर लेता है। सृष्टि का सारा चक्र इन तीन बिंदुओं पर ही टिका हुआ है। इस दृष्टि से एक ही शाश्वत संबंध है जो परमात्मा और जीव के मध्य स्थापित होता है। परमात्मा ना चाहे तो जीव का जन्म ही ना हो। जीव के जन्म की जिस शारीरिक क्रिया के बाद की जाती है उसमें भी परमात्मा की इच्छा निहित है। इस इच्छा के लिए परमात्मा से दिन-रात प्रार्थना करने वालों की कमी नहीं है। विडंबना यह है कि जीव जन्म लेते ही उस शाश्वत संबंध को भुला देता है और अपने बनाए संबंधों के जाल में उलझकर रह जाता है। उसे माता -पिता ,भाई -बहन ,पत्नी ,बेटा-बेटी , मित्र आदि ही दिखाई देने लगते हैं। इन संबंधों की औपचारिकता निभाने में इतना समय निकल जाता है कि परमात्मा से संबंध निभाना तो दूर याद करने का समय नहीं बचता। यदि हम अपने मूल संबंध के प्रति निष्ठावान नहीं है तो हम किसी अन्य संबंध को भी निष्ठा से निभाने योग्य नहीं हैं। परमात्मा से संबंध की चिंता ना करने का ही फल है कि आज निकट से निकट संबंध में खोट दिखाई दे रहा है। सारे संबंध स्वार्थों पर टिके हैं जब वे स्वार्थ पूरे नहीं होते तो संबंध पल भर में ध्वस्त हो जाते हैं। बाहर से सामान्य दिखने वाले सारे संबंध मन की गहराइयों में कहीं ना कहीं दरके हुए हैं। जब यह दरके संबंध दबाव नहीं सह पाते तो सामाजिक विघटन दिखने लगता है। जब जड़े सूखने लगे तो पेड़ कितने दिनों तक हरा-भरा रह सकता है। निश्चय ही हम एक भयावह स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं। इसका एक ही समाधान है अपने मूल संबंध की जड़ों को फिर से हरा-भरा करना। परमात्मा ने जीवन दिया। जीवित रहने के लिए सांसे दे रहा है। इससे बड़ा कारण और क्या हो सकता है उसके प्रति आभारी होने का। हर एक सांस के लिए उसका आभारी होना ही परमात्मा से संबंध की निष्ठा का निर्वहन करना है। इसे संसार और जीवन को देखने की दृष्टि बदल जाएगी।

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