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बुधवार, 8 जनवरी 2020

गुरु शिष्य परंपरा cftm ner

गुरु शिष्य परंपरा 
 सदियों से भारत भूमि पर गुरु शिष्य का स्नेहिल संबंध रहा है. 
सनातन परंपरा में गुरु अपनी दयालुता, सद्भावना, और आत्मीयता
के विलक्षण स्वरूप से हर एक मानव मन में चरित्र निर्माण ,आपसी प्रेम
और भाईचारे का बीज बोता रहता है.   सशरीर होते हुए भी गुरु तत्व है.
संसार सबसे पवित्र ईश्वरीय देन है. वह मनुष्य के जन्म जन्मांतर के
अंध तमस को दूर कर, उसे दिव्य प्रकाश देता है. गुरु के बिना मनुष्य का
जीवन बिना पतवार की नौका जैसा है.  गुरु के बिना ज्ञान मिलना कठिन है.
गुरु के बिना मोक्ष नहीं मिलता . गुरु के बिना सत्य को पहचानना कठिन है.
गुरु बिना मन के विकारों का मिटना मुश्किल है. अलौकिक जगत में महा पथ
का पथिक गुरु धार्मिकता का प्रथम पुरुष होता है,  जो अपने दिव्य ज्ञान से
शिष्य के अंतः करण के तारों को झंकृत कर देता है. मनुष्य को जीवन जीने
की कला सिखाता है , गुरु शिष्य की उलझी हुई समस्या का समाधान करता है.
महाभारत में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया ही नहीं दिया बल्कि हर
समय उन्हें उचित निर्देश दिया , जब वे दिग्भ्रमित नजर आए . गुरु के
श्री मुख से निकला हर एक शब्द ब्रह्म वाक्य होता है.  जो सत्य की गहराई
से निकलता है. अपनी महत्ता के कारण गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा पद दिया गया है .
शास्त्रों में गुरु को ईश्वर के विभिन्न रूपों में स्वीकार किया गया है, क्योंकि
वह शिष्य को नया जन्म देते हैं, गुरु- विष्णु भी हैं हैं क्योंकि वह मनुष्य की रक्षा करते. 

 गुरु साक्षात महेश्वर भी हैं ,क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संघार  भी करते हैं.
उपनिषदों में कहा गया है कि गुरु के प्राण शिष्यों में और शिष्यों के प्राण
गुरु में बसते हैं.  गुरु मानव चेतना के विकास के हर एक पहलू को जागृत करता है.
शिष्य को जीवन जीने की कला सिखाता है. एक समबुध गुरु को  यदि एक
चेतना वान शिष्य मिल जाए तो वह अपने परम संबोधी के विस्फोट से
नए युग का निर्माण कर सकता है. उसके जीवन में नई संगीत भर सकता है.
आज के समय में एक बार पुनः गुरु शिष्य परंपरा श्रृंखला को कायम होने
की बड़ी आवश्यकता है.  यदि सही गुरु मिल जाए तो जीवन की दिशा
सुधारी जा सकती है .

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