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गुरुवार, 16 जनवरी 2020

संयम का महत्व

संयम का महत्व

संयम व गुण है जिससे व्यक्ति सफलता के शीर्ष को स्पर्श कर सकता है। यह गुण हमारे आत्मिक शक्ति को सफलता प्रदान करता है। यह चरित्त्रिक परिष्कार का कारक है। संयमी व्यक्ति के भीतर अथाह सामर्थ्य का भंडार संग्रहित होता है। संयम का पोषण सद्विचारों एवं सत्संगति से ही संभव है। अच्छे परिवेश , भद्रजनों के सामीप्य से संयम प्राणवान होता है। संयम का गुण इस नश्वर शरीर को अमरता प्रदान करता है,क्योंकि संयम व्यक्ति को सद्कार्यों के लिए उद्वेलित करता है। यह नकारात्मकता को पास नहीं फटकने देता। संयम एवं नकारात्मक विचारों का आपस में बैर है। महात्मा गांधी ने संयम पर अपने विचार रखते हुए कहा था 'जब साहस के साथ संयम और शिष्टाचार जुड़ जाता है,तो वह व्यक्ति अनूठा हो जाता है।' अर्थात व्यक्तित्व में अनूठे पन के लिए संयम का होना अति आवश्यक है। व्यक्ति में मौलिक विशेषता उसके संयम से पोषित होती रहती है। पश्चिमी विचारक रूसो से जब स्वयं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने नियम के बारे में बताया कि 'संयम मनुष्य के जीवन में नई रोशनी उत्पन्न कर देता है।' स्पष्ट है कि संयम में वह शक्ति है जो व्यक्ति के जीवन को प्रकाशमान बना सके। वाणी का संयम व्यक्ति को प्रखर बना देता है। वाणी संयम एक तरह से वाक् सिद्धि है। जिसने अपनी वाणी को संयमित कर लिया वह व्यक्ति अद्वितीय हो जाता है। लोग उसकी ओर आकृष्ट होने लगते हैं । वही इंद्रिय संयम व्यक्ति के प्रकृति को अजय बना देता है । जितेंद्रिय व्यक्ति स्वतः संस्कारों की खान में प्रवर्तित हो जाता है। ऐसे व्यक्तित्व सदैव अनुकरणीय एवं प्रेरणादाई होते हैं। संयमी जीवनचर्या एक आदर्श जीवनचर्या है । नवयुग का निर्माण संयमी युवा शक्ति के सहयोग से संभव है । किसी भी राष्ट्र की युवा पीढ़ी यदि संयमी है तो निश्चित ही उसका सामाजिक परिवेश पावन होगा और वह राष्ट्र प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रहेगा। 

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