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बुधवार, 29 जनवरी 2020

हिन्दी की व्यथा -भानु प्रकाश नारायण

हिन्दी की व्यथा 

 *भानु प्रकाश नारायण
 हिन्दी की समीक्षा बैठक में जैसे ही,
 कुछ बोलने का मन मैंने बनाया, 
तो किसी ने प्यार से समझाया, 
दर्द अपना कुछ इस तरह सुनाया। 
 बोला ,वैसे तीन महीने मे एक बार
 अपने सहकर्मियो के साथ आता है, 
 कुछ करता भी है या
 दिखावे की तिमाही समीक्षा बैठक करता है । 
 प्यार भरे लफ्रजो में उसे समझाया
 हिन्दी का हम सम्मा्न करते हैं, 
अपने अधिकारियों के साथ 
हिन्दी का गुणगान करते हैं।
 हिन्दी में किये गये कार्यों को 
 तत्परता से गिना जाते हैं, 
 आगे भी हिन्दी में कार्य करने की 
 वादों की झडी् लगा जाते हैं।
 साथ ही,
 हिन्दी के सम्मांन में मीठा जलपान करते हैं,
 तभी लगा,
 बनावटी हंसी के साथ हिन्दी मुस्कुराई, 
 बयां करते हुए अपने दर्द की
 पूरी दास्तां यूं सुनाई, 
 तुम्हे केवल एक ही दिन 
मेरे गुणगान के लिए मिलता है। 
बाकी दिनों में तो अंग्रेंजी के अतिरिक्त 
कुछ भी तुझे नहीं दिखता है। 
अब तो अपनी ही धरती पर 
अनजाने में मेहमान हो गई हूं। 
 धीरे-धीरे अपने बच्चों में 
 अल्प ज्ञान हो गई हूं 
 चलते फिरते हर जुबां से
 अनजान सी हो गई हों।
 मैंने अपने मनमस्तिंष्क को झकझोरा, 
अपने ज्ञान की पोटली में टटोला, 
सच ही कहती हो तुम 
हिन्दी सम्बोधन से गायब हो गई हो।
 ज्ञानी लोगों के बीच 
हिन्दी बोलते हम हिचकिचातें हैं, 
 अपनी हिन्दी को पराया कर अंग्रेजी को गले लगाते हैं। **********************

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