रेल की ईंटे
रेल की इन पुरानी ईंटो को देखिये और आत्ममंथन एवं आत्मसात कीजिए।
सन् 1890 से ही लगी ये ईंटे न जाने कितने
आंधी, तूफान, वर्षा, धूप एवं
दबाव को झेलते हुए बिना घिसे-पिटे ही
रेल के जिस हिस्से में पड़ी है,
अनवरत बिना किसी शिकायत के
लोगों के लिए जीवनदायनी बनी हुई है।
इनमें नहीं टूटने की धैर्यता की प्रशंसा की
जानी चाहिए एवं इससे प्रेरणा
लेते हुए जीवन के अनेक बाधाओं को झेलते एवं सहते हुए
रेल की
सौन्दर्यता एवं एकता को बरकरार रखा जाना चाहिए। यही
रेल परिवार का रेल के
प्रति प्रथम कर्तव्य भी है।
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विकाश कुमर
प्रसाद,
वैज्ञानिक
पर्यवेक्षक,
प्रमुख मुख्य
परिचालन प्रबन्धक कार्यालय,
पूर्वोत्तर
रेलवे, गोरखपुर।
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