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बुधवार, 17 अगस्त 2022

अहंकार का परित्याग

 अहंकार का परित्याग


    अहंकार किसी भी व्यक्ति का पतन सुनिश्चित कर देता है। जहां अहंकार होता है वहां विनम्रता, बुद्धि, विवेक और चातुर्य का लोप हो जाता है। वस्तुतः अहंकार मनुष्य के मस्तिष्क द्वार पर जड़ा ऐसा ताला है, जो सद्गुणों का भीतर प्रवेश नहीं होने देता। कहा भी गया है कि 'अहंकार में तीनों गए बल, बुद्धि और वंश, ना मानो तो देख लो कौरव, रावण और कंस।' अहंकारी व्यक्ति अपने मद में दूसरों को तुच्छ समझता है। अहंकार मनुष्य को आत्मघाती दलदल में धकेल देता है और उसे यह आभास भी नहीं होता। वह मनुष्य को न केवल सच्चाई से परे एक कल्पना लोक में ले जाता है, बल्कि जीवन के साथ सामंजस्य स्थापित करने वाली परिस्थितियों से भी दूर कर देता है। जो लोग अहंकार करते हैं, उनके सभी गुण विलुप्त हो जाते हैं। रूप-सौंदर्य हो या उच्च पद या बहुत ज्यादा धन, मनुष्य को कभी भी उन पर अहंकार नहीं करना चाहिए। ये सभी शाश्वत नहीं है तो फिर गुमान किस बात का ।

    अहंकार के उलट स्वाभिमानी होना अच्छा गुण है। लोगों में यह गुण विद्यमान होना चाहिए, परंतु आज तमाम लोग इन दोनों में तार्किक विभेद नहीं कर पाते। लोग अहंकार के वशीभूत होकर आवेश में लिए फ़ैसलों को स्वाभिमान से जोड़कर देखने लगे हैं, जो कदापि उचित नहीं। वे अपनी सफलता पर अहंकार करने लगते हैं। इससे उनकी योग्यता कम होने लगती है। अभिमान में फूलना स्वयं को भूलना ही है।

    मनुष्य को सदैव अपने संघर्ष के समय को याद रखना चाहिए। कुछ लोगों में सफलता के उपरांत अहंकार की भावना घर कर जाती है। ऐसे लोगों की सफलता अधिक दिनों तक नहीं रहती। सदैव स्मरण रखना चाहिए कि सफलता के बाद अहंकार का नहीं, अपितु विनम्रता के भाव को पोषित करना चाहिए । इसमें कोई दो राय नहीं कि अहंकार और अकड़ वास्तव में ऐसी दौड़ है, जहां हर जीतने वाला हार जाता है। इसीलिए जीवन में अहंकार का परित्याग कर विनम्र होना ही श्रेयस्कर है।

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