संकलन
रामत्व से कृष्णत्व की ओर
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भारतीय जनमानस के परम आदर्श राम भी हैं और कृष्ण भी।ये दोनों भारतीय धर्म-परंपरा के ऐसे प्रज्ञा-पुरुष हैं जिनसे हर देश-काल का व्यक्ति प्रेरणा लेता है-मर्यादा की भी और असीमता की भी।
भगवान राम का जीवन मर्यादाओं को कभी तोड़ता नहीं है, जबकि कृष्ण समय आने पर इसका अनुसरण नहीं करते हैं। राम का जीवन एक आदर्श है तो कृष्ण का जीवन एक उत्सव।
पुत्र के रूप में वनवास, भाई के रूप में पादुका -त्याग और पति के रूप में सीता- वियोग ...... राम के दुखों का ना ओर ना छोर। सत्य के पथ पर अटल राम कभी अपनी मर्यादा नहीं त्यागते। दूसरी तरफ कृष्ण हैं जो परिस्थिति खराब होने पर मैदान को छोड़ना भी बुरा नहीं मानते और रणछोड़ कहलाते हैं।
राम राजा हैं, कृष्ण राजनीति। राम रण हैं , कृष्ण रणनीति।
राम ऋषियों के रक्षार्थ असुरों का वध करते हैं जबकि बंदी गृह में जन्मे कृष्ण को शैशव में ही दांवपेच की विभीषिका से जूझना पड़ता है। मर्यादा का पालन करते हुए राम एक -पत्नीवव्रत धारण करते हैं। उन्होंने सीता जी से प्रेम किया और उन्हीं से विवाह भी। परंतु कृष्ण ने प्रेम तो राधा से किया लेकिन विवाह रुक्मणी से। राम का नाम उनकी पत्नी के साथ लिया जाता है जबकि कृष्ण का उनकी प्रेमिका के साथ।
राम को मारीच भ्रमित कर सकता है पर कृष्ण को पूतना की ममता भी उलझा नहीं सकती।
राम लक्ष्मण को मूर्छित देखकर बिलख पड़ते हैं लेकिन कृष्ण अभिमन्यु को दांव पर लगाने से भी नहीं हिचकते।
व्यक्ति का कृष्ण होना भी उतना ही जरूरी है जितना राम होना।
एक कंस पापी संहारे एक दुष्ट रावण को मारे
दोनों अधिन दुखहर्ता दोनों बल के धाम।
राम आदर्शों को निभाते हुए कष्ट सहते है ,कृष्ण स्थापित आदर्शों को चुनौती देते हुए एक नई परिपाटी को जन्म देते हैं।
राम मानवीय मूल्यों के लिए लड़ते हैं, कृष्ण मानवता के लिए।
राम अनुकरणीय हैं, कृष्ण चिंतनीय।
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