अवसर
समय साधारण भी होते
हैं और असाधारण भी। साधारण समय को जिस-तिस प्रकार काटा जाता है, पर जब निर्णायक समय
हो तो फैसला करने में असमंजस में अवसर गंवा देना बहुत भारी पड़ता
है। कहते हैं कि महानता अपनाने के लिए बायां हाथ सक्रिय हो
तो उसी से अवसर को पकड़ लें। ऐसा न हो कि दाहिना हाथ संभालने की थोड़ी-सी ही अवधि
में ही जो सुयोग बन रहा था, उसे सदा के लिए गंवा बैठें। आदि शंकराचार्य, समर्थ गुरु रामदास, विवेकानंद, दयानंद आदि ने भी
अपना लक्ष्य निर्धारित करने में वर्षों का समय नहीं गंवाया था।
प्रसवकाल की थोड़ी सी
लापरवाही जच्चा और बच्चा दोनों के प्राण हरण कर सकती है। ड्राइवर की तनिक सी
असावधानी वाहन दुर्घटना को निमंत्रण देने जैसा है। निशाना साधने वाले का हाथ
जरा सा हिल जाए तो तीर कहीं से कहीं चला जाएगा। मनुष्य का
जीवन ऐसा ही अलभ्य अवसर है, यह किसके पास कितने दिन ठहरेगा,
इसकी कोई गारंटी नहीं है। कौन जाने आज
का सोया व्यक्ति कल उठने से पूर्व ही सदा सर्वदा के लिए आंखें बंद
कर ले। जब शंकराचार्य, विवेकानंद, रामतीर्थ जैसे महामानव अल्पायु में ही प्रयाण कर गए तो कौन इस बात को विश्वासपूर्वक कह
सकता है कि किसे कितने दिन जीने का अवसर मिल ही जाएगा। ऐसे दुर्लभ अवसर का निर्णायक निर्धारण कर लेने में ही
बुद्धिमानी है।
यह युग संधि की बेला
है। बीसवीं सदी विदा हो गई और इक्कीसवीं सदी का भी एक भाग बीत गया है। यह अवसर असाधारण
है। जन्म का आरंभ और मरण का समापन भी कुछ विचित्र प्रकार का माहौल बनाते और नई तरह
के संवेदन उभारते हैं। इन दिनों भी ऐसा ही कुछ होना है। जागृत आत्माओं को
कुछ ऐसे निर्णय करने पड़े रहे हैं,
जो उनकी गरिमा के अनुरूप
हैं। इन दिनों मनुष्य जाति का भाग्य एक नए. कागज पर,
नई स्याही से, नए सिरे से लिखा जा
रहा है। इस उथल-पुथल में हमारा स्थान कहां हो,
यह चयन करने का यही उचित अवसर है।
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