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बुधवार, 24 अगस्त 2022

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

 आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी



     ----भानु प्रकाश नारायण 

हिंदी साहित्य के उत्कृष्ट साहित्यकार, प्रसिध्द आलोचक, निबंधकार एवंं उपन्यासकार  बैजनाथ द्विवेदी जिन्हें हम आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के नाम से जानते हैं।इनका जन्म 19 अगस्त 1907 ( श्रावण शुक्ल एकादशी) को ग्राम आरत दुबे का छपरा, ओझवलिया, बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था। उनके पिता का नाम पंडित अनमोल द्विवेदी था, जो संस्कृत के एक प्रकांड विद्वान थे। उनकी माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती देवी था। उनकी पत्नी का नाम भगवती देवी था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। 

      द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के विद्यालय से हुई। उन्होंने 1920 में बसरिकापुर के मिडिल स्कूल से मिडिल स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। फिर सन् 1923 में वे विद्याध्ययन के लिए काशी चले गए। वहाँ उन्होंने रणवीर संस्कृत पाठशाला, कमच्छा से प्रवेशिका परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की। यहाँ रहकर उन्होंने 1927 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1929 में उन्होंने इंटरमीडिएट और

संस्कृत साहित्य में शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर 1930 में उन्होंने ज्योतिष विषय में आचार्य की उपाधि प्राप्त की। शास्त्री तथा आचार्य दोनों ही परीक्षाओं में उन्हें प्रथम श्रेणी प्राप्त हुआ।

पहले वे मिर्जापुर के एक विद्यालय में अध्यापक हुए, वहाँ पर आचार्य क्षितिजमोहन सेन ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और वे उन्हें अपने साथ शांति-निकेतन ले गए।

8 नवंबर, 1930 को हिन्दी शिक्षक के रुप में शांतिनिकेतन में कार्यरंभ किया। आपने शांतिनिकेतन में  20 वर्षों तक 1930 से ‌1950 तक हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष रहे। 

        आपने अभिनव भारती ग्रंथमाला व विश्वभारती पत्रिका का संपादन किया।  हिंदी भवन, विश्वभारती, के संचालक रहे।  लखनऊ विश्वविद्यालय से सम्मानार्थ डॉक्टर ऑव लिट्रेचर की उपाधि पायी। 1950  में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी प्रोफेसर और हिंदी विभागध्यक्ष के पद पर नियुक्ति हुए। विश्वभारती विश्वविद्यालय की एक्जीक्यूटिव कांउसिल के सदस्य रहे, काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष, साहित्य अकादमी दिल्ली की साधारण सभा और प्रबंध-समिति के सदस्य रहे। नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, के हस्तलेखों की खोज तथा साहित्य अकादमी से प्रकाशित नेशनल बिब्लियोग्रैफी  के निरीक्षक रहे। राजभाषा आयोग के राष्ट्रपति-मनोनीत सदस्य रहे।  1957 में राष्ट्रपति द्वारा पद्मभूषण उपाधि से सम्मानित किए गए। 1960-67  तक पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हिंदी प्रोफेसर और विभागध्यक्ष रहे।

1962 में पश्चि बंग साहित्य अकादमी द्वारा टैगोर पुरस्कार। 1967  के पश्चात्  पुन: काशी हिंदू विश्वविद्यालय में, जहाँ कुछ समय तक रैक्टर के पद पर भी रहे। 1973 में साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया।

आचार्य द्विवेदी जी की भाषा उनकी रचना के अनुरूप होती है। उनकी भाषा के तीन रूप हैं- तत्सम प्रधान, सरल तद्भव प्रधान एवं उर्दू अंग्रेजी शब्द युक्त।

आपने भाषा को प्रवाह पूर्ण एवं व्यवहारिक बनाने के लिए लोकोक्तियों एवं मुहावरों का सटीक प्रयोग किया है। प्रांजलता, भाव प्रवणता,सुबोधता , अलकरिता,सजीवता और चित्रोपमता आपकी भाषा की विशेषता है।


मुख्य कृतियाँ


आलोचना : हिन्दी साहित्य की भूमिका, हिन्दी साहित्य, हिन्दी साहित्य का आदिकाल, नाथ सम्प्रदाय, साहित्य सहचर, हिन्दी साहित्य : उद्भव और विकास, सूर साहित्य, कबीर, कालिदास की लालित्य योजना, मध्यकालीन बोध का स्वरूप, साहित्य का मर्म, प्राचीन भारत में कलात्मक विनोद, मेघदूत : एक पुरानी कहानी, मध्यकालीन धर्म साधना, सहज साधना


उपन्यास : बाणभट्ट की आत्मकथा, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा, चारु चंद्रलेख


निबंध : कल्प लता, विचार और वितर्क, अशोक के फूल, विचार-प्रवाह, आलोक पर्व, कुटज


अन्य : मृत्युंजय रवीन्द्र, महापुरुषों का स्मरण


संपादन : पृथ्वीराज रासो, संदेश रासक, नाथ सिध्दों की बानियाँ, अभिनव भारती ग्रंथमाला व विश्वभारती पत्रिका का संपादन।


       जीवन के अंतिम दिनों में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष पद को इन्होंने सुशोभित किया ।

               19 मई 1979 को चमकता हुआ सितारा हमेशा हमेशा के लिए हमारी आंखों से ओझल  हो गया।  


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